रिश्तों का अलाव
कभी ज़िन्दगी से रूबरू हो कर देखा हैं ?कभी रिश्तों का अलाव तापा हैं ? सर्द सियाह रात की तपिश से जलते हुएकभी चोटी पे बैठे उस सन्यासी कोमहसूस किया हैं अपने अंदर? इच्छाओं...
Clear minds better lives !
कभी ज़िन्दगी से रूबरू हो कर देखा हैं ?कभी रिश्तों का अलाव तापा हैं ? सर्द सियाह रात की तपिश से जलते हुएकभी चोटी पे बैठे उस सन्यासी कोमहसूस किया हैं अपने अंदर? इच्छाओं...
अबाध गति से बहता पानीकहता……जग तू अस्थिर……मैं ही शाश्वततू रहता…….हर पल बदलतातेरी काया….तेरी छायाबदलती रहती….हर दिन हर पल मैं अविराम चलाचल प्राणीतंत्री प्राण समाहित जल मेंजो मैं कल था आज वही हु, किनारे बैठा...
नभ के आलिंगन मेंविविधताओं का ये देश बड़ा, सुमधुर संगम धर्मों काभाषाओँ में है स्नेह छुपा, शीश ललाट है हिम शोभितवरुणेश्वर हर पल पग धोता, इस सुन्दर पट पर जाने क्यूँचिंगारी की हैं इक...
सुबह सुबह की कोमल किरणेजब नदियों को छु जाती है,इठलाती बलखाती लहरेंझिलमिल सी झांकी लाती है, नत मस्तक हो हिम-पर्बत भीउसको शीश नवाता है,कल-कल ध्वनि का सुमधुर गायनपल-पल को युग कर जाता है,रात्रि काल...
कितना है श्रृंगार जनम मेंउदगार फिर क्यूँ है मन में, धन लालायित मनुष्यता काअंतिम जब आधार मरण में, दिशा विहीन मनुष्यता जबपशुता संग ही ओझल हो गयी, सिक्को की झंकार न जानेउन्नति का अभिशाप...
More
Recent Comments