ईश्वर का रूप
सुबह सुबह की कोमल किरणेजब नदियों को छु जाती है,इठलाती बलखाती लहरेंझिलमिल सी झांकी लाती है, नत मस्तक हो हिम-पर्बत भीउसको शीश नवाता है,कल-कल ध्वनि का सुमधुर गायनपल-पल को युग कर जाता है,रात्रि काल...
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सुबह सुबह की कोमल किरणेजब नदियों को छु जाती है,इठलाती बलखाती लहरेंझिलमिल सी झांकी लाती है, नत मस्तक हो हिम-पर्बत भीउसको शीश नवाता है,कल-कल ध्वनि का सुमधुर गायनपल-पल को युग कर जाता है,रात्रि काल...
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