नभ के आलिंगन में
नभ के आलिंगन में
विविधताओं का ये देश बड़ा,
सुमधुर संगम धर्मों का
भाषाओँ में है स्नेह छुपा,
शीश ललाट है हिम शोभित
वरुणेश्वर हर पल पग धोता,
इस सुन्दर पट पर जाने क्यूँ
चिंगारी की हैं इक सीमा है,
इधर भी अग्नि, उधर भी अग्नि
बारूदों का बीज बुआ,
ये दुश्मन क्यूँ मेरे दिल को
इक भाई जैसा लगता है,
हम दोनों अनुजों ने मिल कर
है अपनी माँ को चीर दिया,
इस कायरपन पर दोनों ने फिर
अपने को ही वीर कहा,
हैं मातृ-घात के पापी हम
क्या भ्रातृ-घात प्रायश्चित अब !
जब हम दोनों इक रज से जन्में
क्यूँ व्यापार हैं आपस में?
तू कुछ ले ले, मैं कम ले लूँ
क्या देने में ना शौर्य छुपा?
इन्द्रालय जायेंगे जब दोनों
क्या संग जायेगा इक टुकड़ा?
जब तू कारगिल का खुनी हैं
और मैं बंगाल का एक धब्बा,
चल दोनों मिल कर चलते हैं
फिर संग संग पाए एक सपना
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