ह्रदय विहान
अबाध गति से बहता पानी
कहता……
जग तू अस्थिर……मैं ही शाश्वत
तू रहता…….हर पल बदलता
तेरी काया….तेरी छाया
बदलती रहती….हर दिन हर पल
मैं अविराम चलाचल प्राणी
तंत्री प्राण समाहित जल में
जो मैं कल था आज वही हु,
किनारे बैठा तू मूक प्राणी
कल भिन्न था आज भिन्न है,
तुझसे तो मैं बेहतर मानो
कल जो था मैं आज वही हु,
कल-कल ध्वनि से तू ललचाये
सुमधुर जीवन ना तुझको भाये
पर-दोष पर हर्ष-आधारित
रहता न तुझ में समाहित,
क्षणभंगुर सा जीवन मानो
कष्टों का श्रृंगार किया हो,
सुर-बाला ने पल भर में ही
शत्रु-लता से नेह छला हो,
खुशियों पर तो ग्रहण लगा कर
तू है कहता जीवन अति-सुन्दर,
सुंदरता मैं कैसे देखु
नयनो का जब घाव हरा हो,
जल मग्न जब नयन कलश हो
धुंधलका चंहु ऒर घिरा हो,
कैसे मैं फिर वो बन जाऊ
बीचो में है वर्ष घिरा सा,
व्यवहारों का लेप लगा कर
रूप लता को नेह बनाकर,
तू है कहता मैं अति-निर्मल
निर्मलता क्या बाकी मन में!
चिंतित जीवन, शापित यौवन
उन्मुक्त भंवर में ओझल हर पल,
ज्येष्ठों का आभार न मन में
फिर है क्या उद्देश्य जनम में !
लहरें कहती मैं अति निर्मल
लहरें कहती मैं अति पावन,
चल मेरा तू साथी बन जा
दिखलाऊ तुझे जीवन गहना,
मैं श्रृंगार करू तेरा सादर
मैं आभार करू तेरा पावन,
प्रायश्चित तू जग भर कर ले
शुशोभित अब जीवन कर ले,
बहुत हो चुकी उच्चश्रृंखलता
ह्रदय विहान अब दानव कर ले,
शाश्वत हो जा मुझ संग तू भी
निर्मल हो जा मुझ संग तू भी,
शीश जटा से निकली मैं तो
शंकर हो जा मुझ संग तू भी…..